कल कल कल कल नदियाँ बहती, झरने गीत सुनाते हैं,
तरु शाखाओं पर छिपकर खग, पंचम सुर में गाते हैं.
गिरि, नद, जंगल, अवनि, पशु सब, सृष्टि के अनमोल रतन,
मानव सबसे बुद्धि शील बन, अपनी राह बनाते हैं.
नदियों की धारा को रोकी, शिखरों को भी ध्वस्त किया,
काटके जंगल, भवन बनाते, अब क्यों वे पछताते हैं.
सीख नहीं कुछ लेते मानव, प्रकृति सब कुछ देख रही,
कभी केदार, कभी कश्मीर में, मानव ही दुःख पाते हैं.
सेना सीमा की रक्षक है, आपद में करती…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 5:27pm — 10 Comments
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