नए ज़हनों को छूने दो अदब के अनछुए पहलू
इन्हे मीरास में उलझी हुई ज़न्जीर मत देना
लबों को सी लिया मैने,खुदा ये बस में था मेरे
जो आहें दिल से उठ जाएं उन्हें तासीर मत देना
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
मचल जाए ना मेरी रूह फिर दुनिया में आने को
जिया गुमनाम हूँ तो मौत को तशहीर मत देना
रहूँ मैं मुन्हसिर दीदार…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
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