सम्भावना के द्वार पर दस्तक हुई है
देखकर मुझको हुई वह छुईमुई है
देखता ही रह गया विस्मित चकित सा
रंग, रस, मद से भरी वह सुरमई है
रम्य मौसम, रम्य ही वातावरण ये
सुनहली इस साँझ की सज धज नई है
प्रेम की पलपल उमड़ती भावना पर
वर्जनाओं की सतत् चुभती सुई है
तरलता बांधी गयी, कुचली गयी हैं कोपलें
क्रूरता द्वारा सदा सारी हदें लांघी गयी हैं
क्रूरता सहनें को तत्पर, वर्जना मानें ना मन
प्यार का अदभुत् असर हम पर हुआ कुछ जादुई है…
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:30pm — 4 Comments
कुछ जाना कुछ अनजाना-सा लगता है
कुछ भूला कुछ पहचाना-सा लगता है
दर्पण में प्रतिबिम्बित अपना ही मुखड़ा
कुछ अपना कुछ बेगाना -सा लगता है
मुझ-सम लाखो लोग यहां पर बसते है
हर कोई बस दीवाना-सा लगता है
जीवन तो बस वाल्मीकि की वाणी मे
आंसू की गाथा गाना-सा लगता है !
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मौलिक व अप्रकाशित ---नन्दकिशोर दुबे
Added by नन्दकिशोर दुबे on September 22, 2017 at 11:00pm — 2 Comments
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