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Nilesh Shevgaonkar's Blog – September 2020 Archive (3)

ग़ज़ल नूर की- तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ

तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ

मगर मैं सिर्फ चलना जानता हूँ.

.

तेरे हर मूड को परखा है मैंने

तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ.

.

गले मिलकर वो ख़ंजर घोंप देगा

ज़माने का इरादा जानता हूँ.

.

मैं उतरा अपने ही दिल में तो पाया  

अभी ख़ुद को ज़रा सा जानता हूँ.

.

बहा लायी है सदियों की रवानी

मगर अपना किनारा जानता हूँ.

.

बता कुछ भी कभी माँगा है तुझ से?

मैं अपना घर चलाना जानता हूँ.      

.

निलेश…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 30, 2020 at 1:46pm — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा

तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा

हर बार मुझ से पहले तेरा नाम आएगा.

.

अच्छा हुआ जो टूट गया दिल तेरे लिए

वैसे भी तय नहीं था कि किस काम आएगा.

.

अब रात घिर चुकी है इसे लौट जाने दे

यादों का क़ाफ़िला तो हर इक शाम आएगा.`

`

उर्दू की बज़्म में कभी हिन्दी चला के देख

तेरे कलाम में नया आयाम आएगा.

.

उस सुब’ह धमनियों में ठहर जाएगा ख़िराम  

जिस भोर मेरे नाम का पैग़ाम…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2020 at 12:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल नूर की -वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया

वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया

तो क्या उस ने तेरी यादों वाला कमरा देख लिया?

.

वैसे उस इक पल में भी हम अपनों ही की भीड़ में थे

जिस पल दिल के आईने में ख़ुद को तन्हा देख लिया.

.

उस के जैसा दिल तो फिर से मिलता हम को और कहाँ

सो हमने इक राह निकाली, मिलता जुलता देख लिया.

.

मैख़ाने में एक शराबी अश्क मिलाकर पीता है

यादों की आँधी ने शायद उसे अकेला देख लिया.

.

महशर पर हम उठ आए उस की महफ़िल से ये कहकर

तेरी दुनिया तुझे मुबारक़!…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 14, 2020 at 5:30pm — 15 Comments

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