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Omprakash Kshatriya's Blog – September 2015 Archive (2)

लघुकथा - पूंछ

लघुकथा – पूंछ

सीढ़ियाँ गंदी हो रही थी कविता ने सोचा झाड़ू निकल दूँ. यह देखा कर पड़ोसन ने कचरा सीढ़ियों पर सरका दिया.

बस ! फिर क्या था. कविता का पारा सातवे आसमान  पर, “ मैं इस के बाप की नौकर हूँ. नहीं निकाल रही झाड़ू,” बड़बड़ाते हुए कविता ऊपर आई , “ साली अपने को समझती क्या है ? कभी सीढ़ियों पर पानी डाल देगी. कभी लहसन का कचरा. कभी कुछ. मैं इस की नौकर हूँ जो रोजरोज सीढ़ियाँ साफ करती रहू. साली अपने को न जाने क्या समझती है ?

“ क्यों जी. आप बोलते क्यों नहीं.” उस ने पति के हाथ से अख़बार…

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Added by Omprakash Kshatriya on September 22, 2015 at 8:30am — 4 Comments

लघुकथा- अँधा

“आप को अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता है.”

“इंस्पेक्टर साहब ! मेरी बात सुनिए. मैं बेकसूर है. वह मुझ से इजाजत ले कर अपने पूर्व प्रेमी यानि पति के पास गई थी.”

“मैं कुछ नहीं जानता. वह अपने ‘सुसाइड नोट’ में लिख कर गई है कि मैं अपने पति के धोखे की वजह से आत्महत्या कर रही हूँ. इसलिए अब जो कुछ कहना है कोर्ट में कहना.” कह कर इंस्पेक्टर ने हाथ में हथकड़ी लगा दी.

यह देख पति की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, “ वाह ! तू मुझ से इजाजत ले कर अपने हिस्से का उजाला ढ़ूंढ़ने…

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Added by Omprakash Kshatriya on September 2, 2015 at 7:30am — 17 Comments

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