लघुकथा- अनाथ
पत्नी की रोजरोज की चिकचिक से परेशान हो कर महेश पिताजी को अनाथालय में छोड़ दरवाजे से बाहर तो आ गया, मगर मन नहीं माना. कहीं पिताजी का मन यहाँ लगेगा कि नहीं. यह जानने के लिए वह वापस अनाथालय में गया तो देखा कि पिताजी प्रबंधक से घुलमिल कर बातें कर रहे थे. जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं.
पिताजी के कमरे में जाते ही महेश ने पूछा, “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ. वे पिछले ३५ साल से अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरा बात यह है कि ३५ साल पहले जिस बालक को वे इसी अनाथालय से गोद ले गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.”
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१८/१०/२०१५
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
इस मंच के सभी साथियों का दिल से आभार. यह मंच सीखनेसिखाने का एक अच्छा प्लेटफोर्म है. यह आ कर दिल को एक सकून मिलाता है. लगता है कि हम भी कुछ लिख रहे हैं. इस तरह के स्वस्थ परम्परा को मेरा अभिनन्दन .
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप की दाद मिल गई , समझो मेरी मेहनत सफल हो गई. आप की इस आत्मीयता के लिए दिल से आभार . वैसे आ बागी जी की बात का संज्ञान पहले ही ले चूका हूँ. अंतिम पंक्तियाँ हटा दी है. इस से लघुकथा और निखर गई है.
आ कांता रॉय जी व आ Er Ganesh जी बागी जी का पुन शुक्रिया. आप ने मेरी लघुकथा में निखर लाने के लिए सुझाव दिया.
वाह वाह वाह
आदरणीय ओमप्रकाश जी शानदार लघुकथा हुई है. आपको बहुत बहुत बधाई
आदरणीय बागी सर की बात पर जरुर गौर कीजियेगा. सादर
बहुत सार्थक लघु कथा ,कसे हुए शिल्प के साथ बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय
// “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं इन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ. ये पिछले ३५ साल से इस अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरी बात यह है कि ३५ साल पहले जिस बालक को ये इसी अनाथालय से गोद लेकर गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.”
---बस यही इस लघुकथा को समाप्त हो जाना चाहिए था, आगे की पक्ति निरर्थक है, अच्छी लघुकथा हुई बहुत बहुत बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.
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