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लघुकथा- नफरत

अख़बार में प्लास्टिक की बोरी पर दीपक बेचते गरीब बच्चे की फोटो के साथ उस की दास्ताँ छपी थी. जिस ने अपने मेहनत से अमेरिका में एरोनाटिक्स इंजीनियरिंग में मुकाम हासिल किया था. उस फोटो को देख कर हार्लिक बोला , “ कितना गन्दा बच्चा है. इसे देख कर खाना खाने की इच्छा ही न हो.”

“ यदि मैं देख लू तो मुझे उलटी हो जाए,” लुनिक्स ने अपना तर्क दिया, “ मम्मा ! ये भारतीय बच्चे इतने गंदे क्यों होते हैं ? आप तो भारत में रही है ना. आप वहां कैसे रहती थी. ये तो नफरत के काबिल है.”

“ क्यों लुनिक्स ? मेहनत करना गलत है. फिर तुम ने इस की दास्ताँ भी पढ़ी नहीं है. ये कौन है ? क्या है ?”

“ नहीं मम्मा

 ! मैं तो गंदे लोगों से नफरत करता हूँ. इस की शक्ल भी देखना नहीं चाहता हूँ. दास्ताँ पढ़ना तो दूर की बात हैं.”

“ तब तो बेटा, तुम इस घर के मुखिया के उद्यम को कभी जान नहीं पाओगे .” कहते ही मम्मा ने रामायण से वही फोटो निकाल कर माथे से लगा लिया और आँखों से आंसू निकल गए.

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०७/११/२०१५

 (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Omprakash Kshatriya on November 9, 2015 at 6:01am
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी आप ने बिलकुल सत्य बात कही है । जो गरीब से ऊपर उठ जाते हैं वे ही गरीबों से नफरत करते हैं । इस हेतु आप का हार्दिक आभार ।
Comment by Omprakash Kshatriya on November 9, 2015 at 5:58am
आदरणीय शेख उस्मानी जी आप ने मेरी लघुकथा की पुरी समीक्षा कर दी । इस के मूल भावों को खूबसूरती से पेश किया है । इस समीक्षात्मक सहृदयता के लिए आप का हार्दिक आभार । शुक्रिया ।
Comment by मोहन बेगोवाल on November 8, 2015 at 10:51pm

  अति सुंदर रचना , यहाँ भी गरीब घर के बच्चे जब किसी मुकाम पे पहुँच जाते है, उनके बच्चे भी ऐसे ही नफरत करते है 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 8, 2015 at 8:23pm
बहुत सुंदर कटाक्ष न सिर्फ विदेशी सोच बल्कि विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण करने वाले देशी लोगों पर। पूर्वाग्रह कितनी बुरी चीज है, बिना सदगुण समझे ,परखे नफरत के भाव मन में पालने की कुप्रवृित्ति पर रोशनी डालती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश जी।
Comment by Omprakash Kshatriya on November 8, 2015 at 3:58pm
आदरणीय सतविंदर जी आप को लघुकथा सुंदर लगी । आभार आप का मेरी लघुकथा पर उपस्थिति होने तथा टिप्पणी देने के लिए ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 8, 2015 at 2:28pm
बहुत सुंदर आदरणीय ओमप्रकाश जी।हार्दिक बधाई
Comment by Omprakash Kshatriya on November 8, 2015 at 12:23pm
आदरणीय तेजवीर जी आप को लघुकथा पसंद आई और उस मेहनतकश मनुष्य की मेहनत सफल हो गई । उन समस्त मेहनतकश इंसान को मेरा सलाम और आप का आभार ।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 8, 2015 at 10:18am

हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश  जी!आपकी  लघुकथा में इतनी गहनता से एक मेहनतकश मनुष्य का चित्रण बहुत मार्मिक बन पडा है!बहुत शानदार लघुकथा!

Comment by Omprakash Kshatriya on November 8, 2015 at 10:09am
आदरणीय राहिला जी आप का कहना एकदम दुरुस्त है । सभी लोगों की करनी व कथनी में अंतर होता है । अंदर कुछ और बाहर कुछ । यह आजकल का फैशन है । आभार आप का इन अमूल्य व अतुलनीय विचारों के लिए ।
Comment by Rahila on November 8, 2015 at 8:55am
बहुत बेहतरीन रचना आदरणीय ओम प्रकाश जी! ये तो विदेशियों के विचार है।यहांतोस्वदेशी लोग भी ऐसी ही धारणा रखते है । गरीबों से हमदर्दी रखने वालों के भी अंदर कुछ और, बाहर कुछ और की स्थिति बहुत करीब का अनुभव है । बहुत बधाई आपको इस सार्थक लेखन हेतु ।

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