Added by Dr T R Sukul on September 22, 2015 at 10:53am — 2 Comments
50
मैं जाने क्यों कुछ सोच सोच रह जाता हॅूं,
नयनों के तिरछे तीर तीक्ष्ण सह जाता हूूॅं ।
कुछ पता नहीं बस मन से ही क्यों मन की कह जाता हॅूं,
सच है अन्तर की शब्दमाल के भावों में बह जाता हॅूं।
ए जनमन के भाव सिंधु, बढ़ते घटते ए चपल इंदु!
बतलाओ क्यों नहीं सरलता से अपनी तह पाता हॅूं?
झींगुर की झीं झीं से लगता एक मधुर रागनी बन जाऊं,
डलियों की कलियों सी महकी श्रंगार सुंगंधी बन जाऊं,
पर अबला के ए क्रंदन आत्मीयों की पल पल बिछुड़न!
तुम बतलाओ…
Added by Dr T R Sukul on September 11, 2015 at 10:12am — No Comments
Added by Dr T R Sukul on September 3, 2015 at 10:30am — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |