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इक भी आंसू क्यों गिरे जब आंख शोला-बार हो तो
कैसे कोई ख़ुश रहे जब दिल ही में आज़ार हो तो
आपसे है जंग तो मंज़ूर है ये सरफ़रोशी
क्या करें जब आपके ही हाथ में तलवार हो तो
लग रही है ज़िंदगी भी कुछ दिनों से अजनबी सी
लौट आना तुमको मुझसे थोड़ा सा भी प्यार हो तो
क्या किसी के सामने अब राज़े-ज़ख़्मे-पिन्हां खोलें
आपका ग़म-ख़्वार ही जब दुश्मनों का यार हो तो
तूने गरचे तोड़ डाले सारे नाते एक पल में
एक वहशी…
Added by Zaif on September 29, 2021 at 7:30pm — 2 Comments
Added by Zaif on September 28, 2021 at 6:46pm — 8 Comments
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