बह्र : २१२२ २१२२ २१२
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ
गुनगुनाता है चमन इनके किये
फूल पत्तों की जुबाँ हैं तितलियाँ
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2016 at 1:59am — 12 Comments
बह्र : 2122 2122 2122 212
कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना
चन्द पल में सैकड़ों युग दूर जाती कल्पना
स्वप्न है फिर सत्य है फिर है निरर्थकता यहाँ
और ये जीवन उसी में अर्थ कोई ढूँढ़ना
हुस्न क्या है एक बारिश जो कभी होती नहीं
इश्क़ उस बरसात में तन और मन का भीगना
ग़म ज़ुदाई का है क्या सुलगी हुई सिगरेट है
याद के कड़वे धुँएँ में दिल स्वयं का फूँकना
प्रेम और कर्तव्य की दो खूँटियों के बीच…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो
आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें
बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो
जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक
आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो
वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर
पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो
खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे
बालने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2016 at 12:07am — No Comments
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