For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – September 2016 Archive (4)

गजल(कर गुजरते कुछ.......)

छद्मवेशी देशभक्त दोस्तों को समर्पित)

2122 2122 2122 2

***

कर गुजरते कुछ अभी तैयार बैठे हैं

देख अपनों की दशा लाचार बैठे हैं।1



दुश्मनों की नस दबाते, शोर मच जाता,

इश्क के तो ढ़ेर सब बीमार बैठे है।2



दोस्त वह खंजर चलाता आँख बेपानी,

भर रहे हामी मुए इस पार बैठे हैं।3



जीतते आये दिलों पे राज भी करते

भेदियों की भीड़ है मन मार बैठे हैं।4



फूल कितने भी खिलाये चुभ रहे काँटे

बागवाँ पहले यहाँ सब हार बैठे हैं।5



रोशनी… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 28, 2016 at 8:34am — 13 Comments

गजल (फूलों की बात)

2122 2122 2122 2



फूल हैं खिलते निगाहें चार करते हैं,

बागवाँ पर हम बड़ा एतबार करते हैं।1



बाँटते खुशबू जमाने से रहे सब हम,

झेलते झंझा कहाँ तकरार करते हैं?2



हम बटोही प्यार के दो बोल के भूखे ,

खुशनुमा बस आपका संसार करते हैं।3



हैं विहँसते हम सदा बगिया सजाने को,

प्यास आँखों की बुझा आभार करते हैं।4



हो नहीं सकता मसल दे पंखरी कोई,

खार भी रखते बहुत हम प्यार करते हैं।5



जां लुटाने की अगर नौबत हुई तब भी,…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 7:00am — 6 Comments

गजल(काश मुझको....)

बहर-रमल मुसद्दस सामिन

2122 2122 2122

+++

काश मुझको भी मिला उस्ताद होता!

शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।1



हर्फ अपने बात हर दिल की पिरोते,

तालियाँ पिटतीं बहुत इरशाद होता।2



राबिते ढ़ल काफिये मिलते जमीं से

हर बहर में प्यार का संवाद होता।3



फिर कहाँ कोई भटकता रूक्न होता,

नित नया इक शेर तब ईजाद होता।4



रूप का डंका बजाते फिर रहे सब,

हुश्न हर ताबीर से आजाद होता।5



मानती अपनी गजल कविता सुहाती,

फिर नहीं मन में… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 15, 2016 at 8:30pm — 9 Comments

गजल(बंदिशों को तोड़कर....)

2122 2122 2122 212

बंदिशों को तोड़कर हलचल करूँगाआज भी

बात मन की बेझिझक मैं तो कहूँगा आज भी।1



फिर गयीं नजरें बहुत ही क्या हुआ कुछ गम नहीं,

आँख में बनकर सपन मैं तो रहूँगा आज भी।2



ले गये कितने बवंडर तोड़ कर कलियाँ मगर,

डाल पर इक फूल बन मैं तो सजूँगा आज भी।3



टूटती अबतक रही हैं गीत की लड़ियाँ मगर,

राग बन हमराज का मैं तो बजूँगा आज भी।4



लुट गये कितने सपन बेढ़ब फिजाओं के तले,

इक घरौंदा रेत पर फिर से रचूँगा आज भी।5



होंठ… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 5, 2016 at 5:00am — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service