कुछ क्षणिकाएँ :
ख़ामोश जनाज़े
करते हैं अक्सर
बेबसी के तकाज़े
ज़माने से
..........................
सवालों में उलझी
जवाबों में सुलझी
अभिव्यक्ति की तलाश में
बीत गयी
ज़िंदगी
.................................
कोलाहल
ज़िंदगी का
डूब जाता है
श्वासहीन एकांत में
...................................
देकर
एक आदि को अंत
लौटते हुए
सभी खुश थे अंतस में
लेकर ये भ्रम…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2019 at 7:00pm — 12 Comments
हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :
फल फूल रही है
हिंदी के लिबास में
आज भी
अंग्रेज़ी
वर्णमाला का
ज्ञान नहीं
शब्दों की
पहचान नहीं
क्या
ये हिंदी का
अपमान नहीं
शोर है
ऐ बी सी का
आज भी
क ख ग के
मोहल्ले में
शेक्सपियर
बहुत मिल जायेंगे
मगर
हिंदी को संवारने वाले
प्रेमचंद हम
कहाँ पाएँगे
हम आज़ाद
फिर हिंदी क्यूँ
हिंग्लिश की…
Added by Sushil Sarna on September 16, 2019 at 4:07pm — 10 Comments
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