हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :
फल फूल रही है
हिंदी के लिबास में
आज भी
अंग्रेज़ी
वर्णमाला का
ज्ञान नहीं
शब्दों की
पहचान नहीं
क्या
ये हिंदी का
अपमान नहीं
शोर है
ऐ बी सी का
आज भी
क ख ग के
मोहल्ले में
शेक्सपियर
बहुत मिल जायेंगे
मगर
हिंदी को संवारने वाले
प्रेमचंद हम
कहाँ पाएँगे
हम आज़ाद
फिर हिंदी क्यूँ
हिंग्लिश की
ग़ुलाम
टाई
आज भी
धोती पर भारी है
अपने ही घर में
आखिर
हिंदी क्यों
बेचारी है ?
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय vijay nikore जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Samar kabeerजी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
हिन्दी की उत्कृष्टता को स्थापित करती बढ़िया रचना आदरणीय..
वाह, क्या कटाक्ष है इन सुन्दर क्षणिकायों में। आनन्द आ गया। बधाई, मित्र सुशील जी।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, बहुत उम्द: क्षणिकाएँ हुई हैं,बधाई स्वीकार करें ।
'हिंदी' को "हिन्दी" लिखना उचित होगा ।
आ. भाई सुशील जी, उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना जी , हिंदी भाषा की स्वयं अपनों के द्वारा उपेक्षा को बहुत ही सरल शब्दों चित्रित करती क्षणिकाओं के लिए बधाई , सादर।
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