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हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

फल फूल रही है
हिंदी के लिबास में
आज भी
अंग्रेज़ी

वर्णमाला का
ज्ञान नहीं
शब्दों की
पहचान नहीं
क्या
ये हिंदी का
अपमान नहीं

शोर है
ऐ बी सी का
आज भी
क ख ग के
मोहल्ले में

शेक्सपियर
बहुत मिल जायेंगे
मगर
हिंदी को संवारने वाले
प्रेमचंद हम
कहाँ पाएँगे

हम आज़ाद
फिर हिंदी क्यूँ
हिंग्लिश की
ग़ुलाम

टाई
आज भी
धोती पर भारी है
अपने ही घर में
आखिर
हिंदी क्यों
बेचारी है ?

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 698

Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 21, 2019 at 6:03pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on September 21, 2019 at 6:02pm

आदरणीय  vijay nikore जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on September 21, 2019 at 6:02pm

आदरणीय  Samar kabeerजी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on September 21, 2019 at 6:02pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 21, 2019 at 12:45pm

हिन्दी की उत्कृष्टता को स्थापित करती बढ़िया रचना आदरणीय..

Comment by vijay nikore on September 19, 2019 at 7:14pm

वाह, क्या कटाक्ष है इन सुन्दर क्षणिकायों में। आनन्द आ गया। बधाई, मित्र सुशील जी।

Comment by Samar kabeer on September 19, 2019 at 2:38pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, बहुत उम्द: क्षणिकाएँ हुई हैं,बधाई स्वीकार करें ।

'हिंदी' को "हिन्दी" लिखना उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2019 at 2:08pm

आ. भाई सुशील जी, उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on September 17, 2019 at 5:43pm

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2019 at 4:59pm

आदरणीय सुशील सरना जी , हिंदी भाषा की स्वयं अपनों के द्वारा उपेक्षा को बहुत ही सरल शब्दों चित्रित करती क्षणिकाओं के लिए बधाई , सादर।

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