व्योमकेश !
हम हो न
सकते नीलकंठ ....
गरल कर
धारण स्वयम
तुमने उबारा
संसृति को
अमिय देवों
ने पिया
झुकना पड़ा
आसुरी प्रकृति को
थम गया
तव कंठ में ही
सृष्टि का विध्वंस
हम हो न सकते ....
साक्षी थे
तुम भी तो
विकराल मंथन के
सर्प सम संतति
समूची
तुम ही चन्दन थे
विष तुम्हें डंसता नहीं
देता हमें शत दंश
व्योमकेश!
हम हो न सकते......
दृष्टि तेजोमय तुम्हारी …
Added by Vinita Shukla on September 20, 2012 at 11:00pm — 19 Comments
ये हादसे -
महज
अखबार की सुर्खियाँ
पढ़कर इन्हें
जगती नहीं संवेदना
बेस्वाद नहीं होतीं
चाय की चुस्कियां
ये हादसे............
देख- सुन
अत्याचार अनाचार
कछुवे की भांति निर्विकार
सर घुसा लेते हैं
विश्रांति की खोह में
सुस्ताते दो पल
और भूल जाते सब कुछ
जीने के मोह में
पाषाण बन जाती हैं
अनुभूतियाँ
ये..................
नुक्कड़, चौराहों में
दफ्तर, मुह्ल्लों में
उछलते हैं जब
मुद्दे यही
तो…
Added by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 9:17am — 7 Comments
पेड़ों के झुरमुट में
छुप छुप भरमाता है
मेघों के अंचल में
अटक अटक जाता है
यायावर सा फिरता
मतवाला चाँद
उषा- रश्मियों से घिर
धुंधलाता जाता है
अरुणाभा में, नभ की
डूबता- उतराता है
चलाचली की बेला
कहता सूरज को विदा
पवन से पराग की
पीकर हाला चाँद
Added by Vinita Shukla on September 9, 2012 at 9:43pm — 3 Comments
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