व्योमकेश !
हम हो न
सकते नीलकंठ ....
गरल कर
धारण स्वयम
तुमने उबारा
संसृति को
अमिय देवों
ने पिया
झुकना पड़ा
आसुरी प्रकृति को
थम गया
तव कंठ में ही
सृष्टि का विध्वंस
हम हो न सकते ....
साक्षी थे
तुम भी तो
विकराल मंथन के
सर्प सम संतति
समूची
तुम ही चन्दन थे
विष तुम्हें डंसता नहीं
देता हमें शत दंश
व्योमकेश!
हम हो न सकते......
दृष्टि तेजोमय तुम्हारी
पाप होते भस्म
भव- उदधि में
बहने वाले
तुच्छ मानव हम
तुम समय के सारथी
हम काल के बंधक
तुम परे
अवगुंठनों से -
अपनी कुंठाएं अनंत
व्योमकेश!
हम हो न सकते......
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रदीप जी.
सारी बधाई एक साथ
स्वीकारे महोदया जी सादर
'भ्रमर' जी, उत्साहवर्धन के लिए बहुत धन्यवाद.
आदरणीया विनीता जी बहुत ही सुन्दर भावों से सजी यादगार रचना .....महीने की सर्व श्रेष्ठ रचना चुने जाने के लिए आप को हार्दिक बधाई ..
कोटिशः धन्यवाद वंदना जी.
हार्दिक आभार डॉ. प्राची जी.
बहुत बहुत धन्यवाद संदीप.
सम्माननीया विनीता शुक्ला जी, इस बेहद सुन्दर रचना :"हम हो न सकते नीलकंठ " के माह सितम्बर की सर्वश्रेष्ठ रचना चुने जाने पर हार्दिक बधाई
आदरणीया विनीता जी,
आपकी इस सुन्दर भावप्रवण रचना को महीने की सर्वश्रेष्ठ कृति चुने जाने पर हार्दिक बधाई! सादर,
सुन्दर शब्दों में सराहना हेतु आभार सीमा जी.
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