१२२/१२२/१२२/१२
न दे साथ जग तो अकेला बना
नया अपने दम पर जमाना बना।१।
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थका हूँ जतन कर यहाँ मैं बहुत
कि घर मेरा तू ही शिवाला बना।२।
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तुझे अपना कहते बितायी सदी
न ऐसे तो पल में पराया बना।३।
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यहाँ सच की बातें तो अपराध हैं
यही सोच खुद को न झूठा बना।४।
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बड़ों के दिलों में भरा दोष अब
स्वयं को तनिक एक बच्चा बना।५।
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बहुत दम है साथी कहन में मगर
नहीं अपने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 27, 2021 at 6:45am — 7 Comments
परत घटे ओजोन की, बढ़े धरा का ताप
काटे हम ने पेड़ जो, बने वही अभिशाप।१।
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छन्नी सा ओजोन ही, छान रही है धूप
घातक किरणें रोक जो, करती सुंदर रूप।२।
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गोला सूरज आग का, विकिरण से भरपूर
पराबैंगनी ज्वाल को, ओजोन रखे दूर।३।
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जीवन है ओजोन से, करो न इस को नष्ट
बिन इसके धरती सहित होगा सबको कष्ट।४।
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क्लोरोफ्लोरोकार्बन, है जिन की सन्तान
एसी फ्रिज ये उर्वरक, दें उसको नुकसान।५।
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कर इनका उपयोग कम, करना अच्छा काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 15, 2021 at 5:30pm — 4 Comments
निज भाषा को जग कहे, जीवन की पहचान
मिले नहीं इसके बिना, जन जन को सम्मान।१।
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बड़ा सरल पढ़ना जिसे, लिखना भी आसान
पुरखों से हम को मिला, हिन्दी का वरदान।२।
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हिन्दी के प्रासाद का, वैज्ञानिक आधार
तभी बनी है आज ये, भाषा एक महान।३।
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जैसे धागा प्रेम का, बाँध रखे परिवार
उत्तर से दक्षिण तलक, एका की पहचान।४।
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नियमों में बँधकर रहे, हिन्दी का हर रूप
भाषाओं में हो गयी, इस से यह विज्ञान।५।
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गूँजे चाहे विश्व में, हिन्दी कितना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:08pm — 3 Comments
एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )
छूट गयी जब से यहाँ, सहज प्रेम की रीत
आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।
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चलते फिरते तन करे, जब तन से मनुहार
मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।
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एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार
आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।
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भरे सदा ही प्रीत ने, ताजे तन मन घाव
प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।
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मण्डी जब से देह को, कर बैठे हैं लोग
मन से मन के मध्य में, आ पसरी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:25am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नफरत ने जो दिया वो मुहब्बत न दे सकी
हमको सफलता यार इनायत न दे सकी।१।
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चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें
पापों को किन्तु अन्त कयामत न दे सकी।२।
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बूढ़े हुए हैं लोग जो चाहत में स्वर्ग के
कह दो उन्हें कि मौत भी जन्नत न दे सकी।३।
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सोचा था एक हम ही हैं इसके सताये पर
सुनते खुशी उन्हें भी सराफत न दे सकी।४।
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जो बन के सीढ़ी खप गये सत्ता के वास्ते
उनको कफन भी यार सियासत न दे सकी।५।
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चाहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2021 at 8:39pm — 3 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
अँधेरों से डर कर चढ़ा रौशनी पर।१।
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किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
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बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
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खड़े देवता हैं सभी कठघरे में
करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
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सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
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अजब देवता जो डरे आदमी से
हुआ द्वंद भारी यहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments
पर्व गुरुओं का मनाते आज हम
और मन के पास आते आज हम।१।
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पुष्प भावों के चढ़ाते आज हम
शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
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है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
मान उनको दे जताते आज हम।३।
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सीख उनकी आचरण में ढालकर
कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
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आब भर कर है सितारों सा किया
हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
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ज्ञान दाता बढ़ बिधाता से हैं तो
यश उन्हीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments
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