दूर किसी स्टेशन से
शहर के ट्रैफिक को चीरते हुए
फुटपाथ पर उनींदे पड़े बच्चे का स्पर्श लिए
चौथे माले पर बेरोजगारों के कमरे तक
तुम्हारा आना
उन उखड़ी सड़कों से होते हुए
जहाँ की धूल विकास के नारों पर मुस्कुराती है,
बस की पिछली सीढ़ियों से लटकते हुए
बेटिकट पहुँचना मेरे गाँव
और मुझे छज्जे के कोने पर बैठा देख
यक-ब-यक मुस्कुराना
तुम्हारा आना
छिपकली की तरह दीवार पर
आँधियों की तरह…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 6, 2014 at 11:34pm — 2 Comments
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