For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog – October 2020 Archive (4)

ग़ज़ल (निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता)

1222-1222-1222-1222

निगलते  भी  नहीं  बनता  उगलते  भी  नहीं  बनता 

हुई  उनसे  ख़ता  ऐसी   सँभलते  भी   नहीं  बनता 

इजारा  बज़्म  पे ऐसा  हुआ  कुछ   बदज़बानों  का

यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता 

जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट

ज़बाँ  से शे'र  क्या  मिसरा निकलते भी नहीं बनता 

रक़ीबों को  ख़ुशी  ऐसी मिली हमको  तबाह करके

कि  चाहें  ऊँचा उड़ना  पर  उछलते भी नहीं बनता 

ख़ुद…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:13am — 10 Comments

ग़ज़ल (ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे...)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ज़िन्दगी   भर   हादसे   दर   हादसे   होते   रहे

और   हम   हालात   पर   हँसते   रहे  रोते  रहे

आए   हैं   बेदार  करने   देखिये   हमको   वही

उम्र  भर  जो  ग़फ़लतों  की  नींद  में  सोते  रहे

 

कर  दिए आबाद  गुलशन  हमने  जिनके वास्ते 

वो   हमारे   रास्तों    में    ख़ार    ही   बोते   रहे 

बोझ  बन  जाते  हैं  रिश्ते  बिन भरोसे  प्यार के

जाने  क्यूँ  हम नफ़रतों  की  गठरियाँ  ढोते …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments

ग़ज़ल (हर  ख़ुशी  हर मोड़ पर...)

2122 - 2122 - 2122 - 21- 21

हादिसात   ऐसे   हुए   हैं   ज़िन्दगी   में   बार-बार

हर  ख़ुशी  हर मोड़ पर  रोई  तड़प कर  ज़ार-ज़ार

दर्द  ने   अंँगडाईयाँ  लेकर  ज़बान-ए-तन्ज़  में  यूँ 

पूछा    मेरी   बेबसी   से   कौन   तेरा   ग़म-गुसार

अपनी-अपनी क़िस्मतें  हैं अपना-अपना इंतिख़ाब

दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार 

रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब

जिस जगह पर हम  किया करते  हैं तेरा…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments

ग़ज़ल (न यूँ दर-दर भटकते हम...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता

ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता 

बिछा  के राहों  में काँटे  पता देते  हैं  मंज़िल   का

कोई  तो  रहनुमा   होता  कोई   तो  मेह्रबाँ   होता

ख़ुदा या  फेर लेता रुख़  जो तू भी ग़म के मारों से

तो  मुझ-से  बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता

बने  तुम  हमसफ़र  मेरे  ख़ुदा  का   शुक्र  है वर्ना 

न  जाने  तुम  कहाँ  होते  न  जाने मैं  कहाँ …

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service