1222-1222-1222-1222
निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता
हुई उनसे ख़ता ऐसी सँभलते भी नहीं बनता
इजारा बज़्म पे ऐसा हुआ कुछ बदज़बानों का
यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता
जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट
ज़बाँ से शे'र क्या मिसरा निकलते भी नहीं बनता
रक़ीबों को ख़ुशी ऐसी मिली हमको तबाह करके
कि चाहें ऊँचा उड़ना पर उछलते भी नहीं बनता
ख़ुद…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:13am — 10 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
ज़िन्दगी भर हादसे दर हादसे होते रहे
और हम हालात पर हँसते रहे रोते रहे
आए हैं बेदार करने देखिये हमको वही
उम्र भर जो ग़फ़लतों की नींद में सोते रहे
कर दिए आबाद गुलशन हमने जिनके वास्ते
वो हमारे रास्तों में ख़ार ही बोते रहे
बोझ बन जाते हैं रिश्ते बिन भरोसे प्यार के
जाने क्यूँ हम नफ़रतों की गठरियाँ ढोते …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 11, 2020 at 9:57pm — 5 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 21- 21
हादिसात ऐसे हुए हैं ज़िन्दगी में बार-बार
हर ख़ुशी हर मोड़ पर रोई तड़प कर ज़ार-ज़ार
दर्द ने अंँगडाईयाँ लेकर ज़बान-ए-तन्ज़ में यूँ
पूछा मेरी बेबसी से कौन तेरा ग़म-गुसार
अपनी-अपनी क़िस्मतें हैं अपना-अपना इंतिख़ाब
दिलपे कब होता किसी के है किसी को इख़्तियार
रफ़्ता-रफ़्ता जानिब-ए-दिल संग भी आने लगे अब
जिस जगह पर हम किया करते हैं तेरा…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 8, 2020 at 11:51am — 4 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
न यूँ दर-दर भटकते हम जो अपना आशियाँ होता
ख़ुदा ने काश हमको भी किया अह्ल-ए-मकाँ होता
बिछा के राहों में काँटे पता देते हैं मंज़िल का
कोई तो रहनुमा होता कोई तो मेह्रबाँ होता
ख़ुदा या फेर लेता रुख़ जो तू भी ग़म के मारों से
तो मुझ-से बेक़रारों का ठिकाना फिर कहाँ होता
बने तुम हमसफ़र मेरे ख़ुदा का शुक्र है वर्ना
न जाने तुम कहाँ होते न जाने मैं कहाँ …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 7, 2020 at 8:36am — 3 Comments
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