2122-1212-22
शुक्र तेरा अदा नहीं होता
और वा'दा वफ़ा नहीं होता
तू न तौफ़ीक़ दे अगर मौला
एक सज्दा अदा नहीं होता
सिर्फ़ तौबा पे बख़्शने वाले
कोई तुझ-सा बड़ा नहीं होता
घर नहीं, है वो एक वीराना
ज़िक्र जिस में तेरा नहीं होता
सबके अहवाल जानता है तू
कुछ भी तुझ से छुपा नहीं होता
तेरी रहमत के आसरे पर हूँ
तू जो चाहे तो क्या नहीं होता
और बे-ज़र 'अमीर'…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2022 at 11:08pm — 7 Comments
2122 - 2122 - 2122 - 212
वो जो हम से कह चुके वो हर बयाँ महफ़ूज़ है
दास्तान-ए-ग़ीबत-ए-कौन-ओ-मकाँ महफ़ूज़ है
मुश्त'इल करने की हम को कोशिशें कितनी हुईं
लो हमारे दिल में देखो सब यहाँ महफ़ूज़ है
हक़-बयानी जिसका शेवा हो कभी झुकता नहीं
दार तक रंग-ए-रुख़-ए-ताब-ओ-तवाँ महफ़ूज़ है
ज़ब्त कहते हैं जिसे वो है समंदर में कहाँ
ये उलट देता है सब-कुछ जो जहांँ महफ़ूज़ है
ज़र्फ़ ये बख़्शा है रब ने…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 3, 2022 at 10:54pm — 2 Comments
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