गैर कोई है छिपा सा देखता हूँ
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2122 2122 2122
जब अंधेरों में उजाला देखता हूँ
सच में रोशन भी हुआ क्या, देखता हूँ
मैंने कल काँटा चुभा तो, फूल माना
कुछ असर उसपे हुआ क्या, देखता हूँ
लोग इंसानों की भाषा बोल लें पर
गैर कोई है छिपा सा देखता हूँ
अश्क़ कोई देख लेता है निहानी
तब ख़ुदाई, मैं ख़ुदाया देखता हूँ
ख्वाब सारे थे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 3, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
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