For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

१२२२    १२२२     १२२२      १२२

मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं है

इसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन नहीं है

 

समय की धार ने बदला है साँपों को भी शायद

वो लिपटे हैं मेरी बाहों से जो चन्दन नहीं है

 

जिन्हों ने कामनाओं की जकड़ स्वीकार की थी   

उन्हीं की भावनाओं में बची जकड़न नहीं है

 

न लो गंभीरता से तुम बुढ़ापे की लड़ाई को

अकेलेपन को भरता  हूँ, यहाँ अनबन नहीं है

 

सभी राहों में कांटे, फूल पत्थर है नदी भी

ये दुनिया छोड़ जाने का कोई कारन नहीं है

 

अगर चलती हैं साँसें तो कभी पूछो तो खुद से

किसी की वेदना में क्यूं यहाँ क्रन्दन नहीं है

 

किसी की दृष्टि बाधित है, किसी की सोच लंगड़ी  

दिखाई साफ़ दे ऐसा कोई दरपन नहीं है

  ***************************************************** 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 115

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2025 at 4:57pm

आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन।उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2025 at 8:56pm

आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हमेशा प्रेरणा दाई  होती है , ग़ज़ल के कुछ शेर आपको अच्छे लगे  जान  कर संतुष्टि हुई | उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 16, 2025 at 10:48am

आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा था. तभी अपरिहार्य कारणों से पैत्रिक गाँव जाना पड़ गया. खैर.. 

आपकी प्रस्तुति के कई शेरों पर अनायास ही वाह-वाही निकल रही है. यह अवश्य है कि मैं ’दरपन’ शब्द को लेकर मिले सुझाव से बहुत सहमत नहीं हूँ.  वस्तुतः, गजल के नाम पर हम उर्दू-फारसी-अरबी शब्दों को लेकर जितने आग्रही हो जाया करते हैं, उसी आवृति से हम हिंदी भाषा में मान्य हो चुके शब्दों और भाषा-व्याकरण के प्रति सनिष्ठ नहीं होते. अतः अपनी समझ के आधार पर अपने विचारों को दृढ कर लेते हैं. ’दर्पण’ तत्सम शब्द है, जबकि इसी शब्द का ’दरपन’ तद्भव रूप है. यदि हम तद्भव को नकारने लगे, तो दूध, काँटा, बछड़ा आदि-आदि जैसे सैकड़ों शब्दों को त्यागना पड़ जाएगा. अलबत्ता, ’कारण’ को ’कारन’ लिखा जाना उचित नहीं है. लेकिन गजल में ’न’ और ’ण’ की तुकान्तता ली जा सकती है. जैसे ’त’ और ’थ’ की तुकान्तता ले ली जाती है. 

शुभातिशुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 10, 2025 at 7:56am

आदरणीय रवि भाई  ग़ज़ल पर उपस्थिति  हो  उत्साह वर्धन  करने के लिए आपका आभार 

आदरणीय आपकी शंका निर्मूल नहीं है , सोचता हूँ कुछ और , अगर आपको सूझे तो आप भी बता सकते हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 10, 2025 at 7:54am

अनुज बृजेश ,  ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभार , मेरी कोशिश हिन्दी शब्दों की उपयोग करने की है  , आपकी सलाह अच्छी है , आपका आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 10, 2025 at 7:50am

आदरणीय अजय भाई ,  ग़ज़ल पर उपस्थिति हो  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 10, 2025 at 7:49am

आ. नीलेश भाई ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार 

Comment by Ravi Shukla on June 9, 2025 at 12:37pm

आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही है 

मुझे पढ़ने में दूसरे शेर  में बाहों को देखते हुए जो चंदन नहीं है की जगह नहीं हैं समझ आ रहा है अगर यह सही है तो रदीफ बदल रही है बाहें बहुवचन है जो चंदन नहीं हैं । देखियेगा । ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें । 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2025 at 11:45am

आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार ने बदली निज़ामत विषधरों की" 

बस एक ख़्याल 

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on May 31, 2025 at 6:17pm

ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी। 

नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि में “न” और “ण” को अलग नहीं किया जा सकता पर देवनागरी में तो इन्हें पृथक ही रखना चाहिए। 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service