वो ममता मयी छुवन हो
जो माँ की कोख से निकलते ही मिली
या हो उसी गोद की जीवन दायनी हरारत
या
तुम्हारी उंगलियों को थामे ,
चलना सिखाते
पिता की मज़बूत, ज़िम्मेदार हथेली हो
या हो
जमाने की भाग दौड़ से दूर , निश्चिंत
कलुषहीन हृदय से
धमा चौकड़ी मचाते , गिरते गिराते , खेलते कूदते
बच्चे
या फिर स्कूलों कालेजों की किशोरा वस्था की निर्दोष मौज मस्तियाँ
या हो वो जवानी में पारिवारिक , सामाजिक ज़िम्मेदारियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 25, 2015 at 1:48pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
बहलने की जिन्हें आदत, बहलना छोड़ देंगे क्या
तेरे वादों की गलियों में, टहलना छोड़ देंगे क्या
तू आँखें लाल कर सूरज, ये हक़ तेरा अगर है तो
तेरी गर्मी से डर, बाहर निकलना छोड़ देंगे क्या
कहो आकाश से जा कर, ज़रा सा और ऊपर हो
हमारा कद है ऊँचा तो , उछलना छोड़ देंगे क्या
दिया जज़्बा ख़ुदा ने जब कभी तो ज़ोर मारेगा
तेरी सुहबत में ऐ पत्थर, पिघलना छोड़ देंगे क्या
ये सूरज चाँद…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 18, 2015 at 10:44am — 16 Comments
1222 1222 122
बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ
जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर
मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ
महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने
भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ
जलादूँ एक तो बाती किसी की
इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ
मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का
अभी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 10:43am — 28 Comments
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