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बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ
जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर
मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ
महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने
भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ
जलादूँ एक तो बाती किसी की
इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ
मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का
अभी ख़ुद को ही मैं समझा रहा हूँ
किसी के वास्ते खुशियों का कारण
किसी की राह का काँटा रहा हूँ
बहे आँसू ने छू कर फिर जगाया
न जाने कब तलक सोता रहा हूँ
तेरी ही सोच ने मारा है मुझको
तेरी ही सोच में जीता रहा हूँ
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना सर माथे पर , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया कांता जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, इस ग़ज़ल को आज देख सका हूँ. बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दिल से दाद हाज़िर है. सादर
बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ ········वाह !!!! सच तो वाई आज के दौर में कचरा ही रह गया है। बहुत खूब कटाक्ष हुआ है। बधाई
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ···········वाह !!! बेमिशाल ! क्या बात है इस सड़क पर इंसान के लहू की। बड़ी ही तंजदार ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।
आदरणीय समर भाई , सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय सतविन्दर भाई , आपको मेरी गज़ल पसन्द आयी जान कर खुशी हुई , आपका बेहद शुक्रिया ।
आदरणीय कृष्णा भाई , कहन की सहजता आपको भली लगी , मुझे बेहद खुशी हुई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय जयनित भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
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