For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -तेरी सुहबत में ऐ पत्थर, पिघलना छोड़ देंगे क्या - ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222        1222      1222  

बहलने की जिन्हें आदत, बहलना छोड़ देंगे क्या

तेरे वादों की गलियों में, टहलना छोड़ देंगे क्या

 

तू आँखें लाल कर सूरज, ये हक़ तेरा अगर है तो  

तेरी गर्मी से डर, बाहर निकलना छोड़ देंगे क्या

 

कहो आकाश से जा कर, ज़रा सा और ऊपर हो

हमारा कद है ऊँचा तो , उछलना छोड़ देंगे क्या

 

दिया जज़्बा ख़ुदा ने जब कभी तो ज़ोर मारेगा

तेरी सुहबत में ऐ पत्थर, पिघलना छोड़ देंगे क्या  

 

ये सूरज चाँद तारे हैं सभी ज़ेरे असर कुदरत

तेरे घर में अँधेरा है , तो ढ़लना छोड़ देंगे क्या

 

हक़ीकत ! तल्ख़ियाँ सारी बजा तो हैं तेरी लेकिन

मेरे अरमाँ हैं सदियों के, मचलना छोड़ देंगे क्या

 

किसे हमवार मिलती है कोई भी राह मंज़िल की

गिरा ले लाख ऐ क़िस्मत, सँभलना छोड़ देंगे क्या

 

यही हैं तिफ्ल वो सारे , पिलाये ज़ह्र थे जिनको

ये मौक़ा पा गये हैं तो , उगलना छोड़ देंगे क्या

 

सरकती हैं, बदलतीं है, अगर है ज़िन्दगी जीवित   

वे जिनकी सांसें जारी हैं, बदलना छोड़ देंगे क्या

*********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amod shrivastav (bindouri) on October 21, 2015 at 4:47pm
क्या बात है बहुत खूब सादर बधाई
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 21, 2015 at 4:29pm

वासी तो सभी शेर काबिले तारीफ हैं ही पर 

तू आँखें लाल कर सूरज, ये हक़ तेरा अगर है तो  

तेरी गर्मी से डर, बाहर निकलना छोड़ देंगे क्या

 

कहो आकाश से जा कर, ज़रा सा और ऊपर हो

हमारा कद है ऊँचा तो , उछलना छोड़ देंगे क्या

मुझे बहुत अच्छी लगी ...दाद कबूलें 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 21, 2015 at 4:19pm
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुयी है आदरणीय..तहेदिल से दाद ही दाद पेश है।
सादर।
Comment by pratibha pande on October 21, 2015 at 1:19pm

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:34pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:33pm

आदरणीय रवि शुक्ला भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

आपकी वो सलाह जो आपने नही दी है , वो मुझे मंज़ूर है , मै तदानुसार परिवर्तन कर लूंगा , क्योकिं वही व्याकरण सम्मत मुझे भी लग रहा है , आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:31pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:30pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:29pm

आदरणीय जय प्रकाश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2015 at 12:28pm

आदरणीय जयनित भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service