1222 1222 1222 1222
बहलने की जिन्हें आदत, बहलना छोड़ देंगे क्या
तेरे वादों की गलियों में, टहलना छोड़ देंगे क्या
तू आँखें लाल कर सूरज, ये हक़ तेरा अगर है तो
तेरी गर्मी से डर, बाहर निकलना छोड़ देंगे क्या
कहो आकाश से जा कर, ज़रा सा और ऊपर हो
हमारा कद है ऊँचा तो , उछलना छोड़ देंगे क्या
दिया जज़्बा ख़ुदा ने जब कभी तो ज़ोर मारेगा
तेरी सुहबत में ऐ पत्थर, पिघलना छोड़ देंगे क्या
ये सूरज चाँद तारे हैं सभी ज़ेरे असर कुदरत
तेरे घर में अँधेरा है , तो ढ़लना छोड़ देंगे क्या
हक़ीकत ! तल्ख़ियाँ सारी बजा तो हैं तेरी लेकिन
मेरे अरमाँ हैं सदियों के, मचलना छोड़ देंगे क्या
किसे हमवार मिलती है कोई भी राह मंज़िल की
गिरा ले लाख ऐ क़िस्मत, सँभलना छोड़ देंगे क्या
यही हैं तिफ्ल वो सारे , पिलाये ज़ह्र थे जिनको
ये मौक़ा पा गये हैं तो , उगलना छोड़ देंगे क्या
सरकती हैं, बदलतीं है, अगर है ज़िन्दगी जीवित
वे जिनकी सांसें जारी हैं, बदलना छोड़ देंगे क्या
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
वासी तो सभी शेर काबिले तारीफ हैं ही पर
तू आँखें लाल कर सूरज, ये हक़ तेरा अगर है तो
तेरी गर्मी से डर, बाहर निकलना छोड़ देंगे क्या
कहो आकाश से जा कर, ज़रा सा और ऊपर हो
हमारा कद है ऊँचा तो , उछलना छोड़ देंगे क्या
मुझे बहुत अच्छी लगी ...दाद कबूलें
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरणीय रवि शुक्ला भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आपकी वो सलाह जो आपने नही दी है , वो मुझे मंज़ूर है , मै तदानुसार परिवर्तन कर लूंगा , क्योकिं वही व्याकरण सम्मत मुझे भी लग रहा है , आपका आभार ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये हृदय से आभारी हूँ ॥
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय जय प्रकाश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया
आदरणीय जयनित भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
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