अरकान : 2122 2122 212
ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ
तुहमतें, रुसवाइयाँ, नाकामियाँ
आए थे जब हम यहाँ तो आग थे
राख हैं अब, उठ रहा है बस धुआँ
दिल लगाने की ख़ता जिनसे हुई
उम्र भर देते रहे वो इम्तिहाँ
सोचता हूँ क्या उसे मैं नाम दूँ
जो कभी था तेरे मेरे दरमियाँ
मैं अकेला इश्क़ में रहता नहीं
साथ रहती हैं मेरे तन्हाइयाँ
कहने को तो कब से मैं आज़ाद हूँ
पाँव में अब भी हैं लेकिन…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on October 23, 2022 at 6:30am — 13 Comments
बह्र : 1222 1222 122
यही इक बात मैं समझा नहीं था
जहाँ में कोई भी अपना नहीं था
किसी को जब तलक चाहा नहीं था
ज़लालत क्या है ये जाना नहीं था
उसे खोने से मैं क्यूँ डर रहा हूँ
जिसे मैंने कभी पाया नहीं था
न बदलेगा कभी सोचा था मैंने
बदल जाएगा वो सोचा नहीं था
उसे हरदम रही मुझसे शिकायत
मुझे जिससे कोई शिकवा नहीं था
उसी इक शख़्स का मैं हो गया हूँ
वही इक शख़्स जो मेरा नहीं…
Added by Mahendra Kumar on October 10, 2022 at 6:27pm — 15 Comments
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