2122 2122 212
कनखियों से एक वादा फिर हुआ
हाँ, मुहब्बत का तकाजा फिर हुआ
हम तो समझे थे बहारें आ गयीं
मौत का सामान ताजा फिर हुआ
उल्फतें बढ़ती रहीं यह देखकर
इश्क का दुश्मन ज़माना फिर हुआ
रास बर्बादी मेरी आयी उन्हें
बाद मुद्दत मुस्कराना फिर हुआ
लौट आयेंगे सुना था एक दिन
किन्तु जीते जी न आना फिर हुआ
रूह रुखसत हो वहां उनसे मिली
और मंजर आशिकाना फिर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 8, 2016 at 6:30pm — 22 Comments
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