चंद क्षणिकाएँ :जीवन
बदल गया
जीवन
अवशेषों में
सुलझाते सुलझाते
गुत्थियाँ
जीवन की
आदि द्वार पर
अंत की दस्तक
अनचाहे शून्य का
अबोला गुंजन
अवसान
आदि पल की
अंतिम पायदान
प्रेम
अंतःकरण की
अव्याखित
अनिमेष
सुषमा रशिम
ज़माने को
लग गई
नई नेम प्लेट
बदल गई
घर की पहचान
शायद चली गई
थककर
दीवार पर टंगे टंगे
पुरानी
नेम…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 30, 2019 at 5:14pm — 10 Comments
प्यार पर चंद क्षणिकाएँ : .......(. 500 वीं प्रस्तुति )
प्यार
सृष्टि का
अनुपम उपहार
प्यार
जीत गर्भ में
हार
प्यार
तिमिर पलों का
शरमीला स्वीकार
प्यार
अंतस उदगारों का
अमिट शृंगार
प्यार
यथार्थ का
स्वप्निल
अलंकार
प्यार
नैन नैन का
मधुर अभिसार
प्यार
यौवन रुत की
लजीली झंकार
प्यार
बिम्बों…
Added by Sushil Sarna on October 24, 2019 at 12:30pm — 10 Comments
चंद क्षणिकाएँ :
मन को समझाने
आई है
बादे सबा
लेकर मोहब्बत के दरीचों से
वस्ल का पैग़ाम
............................
रात
हो जाती है
लहूलुहान
काँटे हिज़्र के
सोने नहीं देते
तमाम शब
............................
रात
जितने भी
नींदों में ख़वाब देखे
उतने
सहर के काँधों पर
अजाब देखे
...............................
हया
मोहब्बत में
हो गयी …
Added by Sushil Sarna on October 21, 2019 at 7:30pm — 9 Comments
माँ .....
सुनाता हूँ
स्वयं को
मैं तेरी ही लोरी माँ
पर
नींद नहीं आती
गुनगुनाता हूँ
तुझको
मैं आठों पहर
पर
तू नहीं आती
पहले तो तू
बिन कहे समझ जाती थी
अपने लाल की बात
अब तुझे क्यूँ
मेरी तड़प
नज़र नहीं आती
मेरे एक-एक आँसू पर
कभी
तेरी जान निकल जाती थी माँ
अब क्यूँ अपने पल्लू से
पोँछने मेरे आँसू
तू
तस्वीर से
निकल नहीं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2019 at 8:27pm — 4 Comments
वो ईश तो मौन है ...
नैनों के यथार्थ को
शब्दों के भावार्थ को
श्वास श्वास स्वार्थ को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
रिश्तों संग परिवार को
छोरहीन संसार को
नील गगन शृंगार को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
अदृश्य जीवन डोर को
सांझ रैन और भोर को
जीवन के हर छोर को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
कौन चलाता पल पल को
कौन बरसाता बादल को
नील व्योम के आँचल को…
Added by Sushil Sarna on October 11, 2019 at 6:23pm — 2 Comments
रिक्तता :.....
बहुत धीरे धीरे जलती है
अग्नि चूल्हे की
पहले धुआँ
फिर अग्नि का चरम
फिर ढलान का धुआँ
फिर अंत
फिर नहीं जलती
कभी बुझकर
राख से अग्नि
साकार
शून्य हो जाता है
शून्य अदृश्य हो जाता है
बस रह जाती है
रिक्तता
जो कभी पूर्ण थी
धुआँ होने से पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 9:26pm — 8 Comments
विजयदशमी पर कुछ दोहे :
राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।
दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।
हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।
प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।
छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।
नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।
राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।
मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।
जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।
ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते…
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 11:48am — 12 Comments
अपना भारत.... (लघु रचना)
हार गई
लाठी से
बन्दूक
आख़िर
जीत गई
बापू की अहिंसा
हिंसा से
मुक्ति दिलाई
गुलामी की
बेड़ियों से
तिरंगे को मिला
अपना आसमान
अपना सम्मान
अपना भारत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 2, 2019 at 9:52pm — 4 Comments
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