विजयदशमी पर कुछ दोहे :
राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।
दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।
हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।
प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।
छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।
नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।
राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।
मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।
जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।
ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते राम।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब , सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रजजी सृजन में निहित भावों को मान देने का दिल से आभार।
वाह बहुत ही सुन्दर दोहे आदरणीय..
जनाब सुशील सरना जी आदाब,विजयदशमी पर अच्छे दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार, विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार, विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार, विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार, विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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