साड़ी में जैसे फाल लगी
डाली में जैसे डाल लगी
मैं भी कुछ खिल जाउंगा
वो आके जब गाल लगी
धीरे से पाती खोल रहीं
तबले पे जैसे ताल लगी
नज़रों की चोली ओढ़ेगी
मालों में जो माल लगी
असीर हैं अनचाहे हम
मछली का वो जाल लगी
इत्र गुलाबी खुशबू फैली
पूजा का वो थाल लगी
अजब सलीके कत्ल किया
चैन की वो ही काल लगी
गाली भी खिल जाएगी
मुखड़े से जब…
ContinueAdded by anand murthy on November 1, 2014 at 1:30pm — 5 Comments
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