विकट विरल है राह कठिन कदम कदम कुहासा है
खड़ा मुसाफिर मुश्किल में वो बेबस बहुत रूआंसा है
संयम और सहजता से निरंतर नित निज काम करो
शनै शनै पुरजोर प्रयासों से प्रज्ज्वलित इक आशा है
संकल्पों के यज्ञकुंड में श्रमनीर का अर्घ्य दान करो
दिनकर दिलबर रश्क करे जिन्दगी की यह परिभाषा है
अरमानों के बीज रोप कर सींचो रोज पसीने से
छ्टे कुहासे साफ़ डगर स्फुटन अंकुर की अभिलाषा है
@आनंद ०७/०१/२०१५ "मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति, आदरणीय आनंद जी. बधाई
आदरणीय आनंद भाई , बहुत सुन्दर रचना की है , हार्दिक बधाई । बस अग्रजों की बातों का खयाल करें ।
सुंदर भावपूर्ण रचना है आनंदजी इस प्रयास हेतु बधाई
आनंद जी, इस सद्प्रयास हेतु बधाई, सुन्दर भाव से युक्त है आपकी रचना, मित्रों की कही बात विचारणीय है.
सुंदर प्रस्तुति पर वही बात टंकन -त्रुटियों पर ध्यान दें |ये विचारों की प्रभाविकता को कम कर देते हैं
सुन्दर प्रस्तुति .... तुकबंदी के शब्दों और आदरणीय हरिप्रकाश जी की बातों पर गौर जरुर कीजियेगा.
आदरणीय सुंदर प्रस्तुति .... आदरणीय दूबे जी के कथन से मैं सहमत हूँ।
आनंद जी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको ... बेवश --- बेबस है ...रुआसा .....रुआंसा......शब्द को देख लीजियेगा !
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