2122-1212-22/112
अब तो इंसाफ भी करें साहिब
हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)
ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश
लोग सब धूप में रहें साहिब (2)
आप सब क्यों उड़े हवाओं में
हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)
काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं
पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)
न ज़मीं है न आसमाँ अपना
ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)
इतना अफ़सोस है अगर फिर तो
शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)
आप सुनते नहीं…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on November 13, 2021 at 9:54pm — 10 Comments
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