122 122 122 122
अभी दुश्मनी में वो शिद्दत नहीं है
हवा को चराग़ों से दिक़्क़त नहीं है
सभी को यहाँ मैं ख़फ़ा कर चुका हूँ
मुझे सच छुपाने की आदत नहीं है
मुझे है बहुत कुछ बताने की चाहत
मगर बात करने की मोहलत नहीं है
किसी से तुझे क्यों मिलेगी मुहब्बत
तुझे जब तुझी से मुहब्बत नहीं है
हक़ीक़त कहूँ तो मैं हूँ ख़ैरियत से
मगर ख़ैरियत में हक़ीक़त नहीं है
मिरे दिल पे तेरी हुक़ूमत है…
ContinueAdded by Zaif on November 19, 2022 at 12:07am — 4 Comments
(आ. समर सर जी की इस्लाह के बाद)
(22 22 22 22)
सोचा कुछ तो होगा उसने
हमको मुड़कर देखा उसने
कौन वफ़ा करता है ऐसी
सारी उम्र सताया उसने
जुड़ता कैसे ये टूटा दिल
टुकड़े करके छोड़ा उसने
जब-जब ज़िक्र-ए-उल्फ़त छेड़ा
तब-तब मुझको टोका उसने
उसको कौन समझ सकता था
बदला रोज़ मुखौटा उसने
जिसको सबसे बढ़कर चाहा
छोड़ा मुझको तन्हा उसने
जाकर वापस…
ContinueAdded by Zaif on November 18, 2022 at 7:32pm — 6 Comments
2122 1212 22/112
जितनी क़िस्मत में थी लिखी रोटी
सबको उतनी ही मिल सकी रोटी
मुफ़्लिसी, भूख, दर्द, दुख, आंसू
हां, बहुत कुछ है बोलती रोटी
याद परदेस में भी आती है
मां के हाथों की वो बनी रोटी
ज़ाइक़ा कुछ अलग ही है इनका
वो नमक-मिर्च, वो दही-रोटी
रो रहा है सड़क पे इक बच्चा-
'दो दिनों से नहीं मिली रोटी'
कीं बहुत 'ज़ैफ़' कोशिशें हमने
बन न पाई वो गोल-सी…
Added by Zaif on November 8, 2022 at 5:30am — 8 Comments
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