उदास रात के साये में ख़्वाब पहने हुए
निकल पड़ा है मुसाफ़िर अज़ाब पहने हुए
डरा सकेगी नहीं जुगनुओं को तारीकी
निकल पड़े हैं वो तो आफ़ताब पहने हुए
नज़र-नज़र से मिली और खा गये धोक़ा
वो दिलफ़रेब मिली थी नक़ाब पहने हुए
यहाँ उदास मैं भी हूँ, वहाँ उदास वो भी है
बहार भी है ख़िज़ां के गुलाब पहने हुए
लो आ गया मिरा महबूब फिर ख़्यालों में
''सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए''
मौलिक व…
ContinueAdded by दीपक कुमार on November 12, 2016 at 9:30am — 4 Comments
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