For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – November 2024 Archive (7)

दोहा सप्तक. . . विरह

दोहा सप्तक. .. . विरह

देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।

गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।

चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।

आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।

जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।

जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।

तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।

आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।

पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।

पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।

बड़ा अजब है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविध

मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।

कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।

जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।

अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।

मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।

निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।

अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।

आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता  अर्थ ।।

कल ही कल की सोच में,…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .शीत

दोहा पंचक. . . . शीत

अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।

बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।

धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।

हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।

शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।

गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।

शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।

शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।

धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।

पहन चुनरिया ओस की,  भोर  करे शृंगार ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .मतभेद

दोहा पंचक. . . . मतभेद

इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।

चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।

मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।

एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।

रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।

सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।

मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।

सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।

जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।

जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 2 Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments

रोला छंद. . . .

रोला छंद . . . .

हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।

सदा सत्य के साथ , राह  पर  चलते  रहना ।

पथ में  अनगिन  शूल , करेंगे   पैदा   बाधा ।

जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।

***

जब तक तन में साँस , बहे यह   जीवन   धारा ।

विपदाओं  से  यार, भला   कब   जीवन   हारा ।

सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।

उस दाता के खेल,  जीव यह  समझ  न   पाया ।

***

जब होता  अवसान ,मृदा  में  मिलती  काया ।

जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।

भोगों…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविध

देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।

कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

धर्म - कर्म  ईमान सब, बेमतलब की बात ।

क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।

आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।

अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।

नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।

प्यार नहीं है  जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service