दोहा सप्तक. .. . विरह
देख विरहिणी पीर को, बाती हुई उदास ।
गालों पर रुक- रुक बही , पिया मिलन की आस ।।
चैन छीन कर ले गया, परदेसी का प्यार ।
आहट उसकी खो गई, सूना लगता द्वार ।।
जलती बाती से करे, शलभ अनोखा प्यार ।
जल कर उसके प्यार में, तज देता संसार ।।
तिल- तिल तड़पे विरहिणी, कहे न मन की बात ।
आँखों से झर - झर बहें, प्रीति जनित आघात ।।
पिया मिलन में नींद तो, रहे नयन से दूर ।
पिया दूर तो भी नयन , जगने को मजबूर ।।
बड़ा अजब है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 27, 2024 at 4:13pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . विविध
मौन घाट मैं प्रेम का, तू चंचल जल धार ।
कैसे तेरे वेग से, करूँ अमर अभिसार ।।
जब आती हैं आँधियाँ, करती घोर विनाश ।
अपनी दम्भी धूल से, ढक देती आकाश ।।
मैं मेरा की रट यहाँ, गूँज रही हर ओर ।
निगल न ले इंसान को,और -और का शोर ।।
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
अपनेपन की आड़ में, लोग निकालें बैर ।।
अर्थ बिना संसार में, सब कुछ लगता व्यर्थ ।
आभासी दुश्वारियाँ, केवल हरता अर्थ ।।
कल ही कल की सोच में,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 25, 2024 at 5:00pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . शीत
अलसायी सी गुनगुनी , उतरी नभ से धूप ।
बड़ा सुहाना भोर में, लगता उसका रूप ।।
धुन्ध चीर कर आ गई, आखिर मीठी धूप ।
हाथ जोड़ वंदन करें, निर्धन हो या भूप ।।
शीत ऋतु में धूप से , मिले मधुर आनन्द ।
गरम-गरम हो चाय फिर , रचें प्रेम के छन्द ।।
शीत भोर की धुंध में, ठिठुर रही है धूप ।
शरमाता है शाल में, गौर वर्ण का रूप ।।
धुन्ध भयंकर साथ फिर, शीतल चले बयार ।
पहन चुनरिया ओस की, भोर करे शृंगार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 20, 2024 at 3:55pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . मतभेद
इतना भी मत दीजिए, मतभेदों को तूल ।
चाट न ले दीमक सभी , रिश्ते कहीं समूल ।।
मतभेदों को भूलकर, प्रेम करो जीवंत ।
एक यही माधुर्य बस , रहे श्वांस पर्यन्त ।।
रिश्तों के माधुर्य में , बैरी हैं मतभेद ।
सम्बन्धों का टूटना, मन में भरता खेद ।।
मतभेदों की किर्चियाँ, चुभतीं जैसे शूल ।
सम्बन्धों के नाश का, है यह कारण मूल ।।
जितना जल्दी भूलते , मतभेदों को लोग ।
जीवन के आनन्द का, उतना करते भोग ।।
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 19, 2024 at 2:51pm — 1 Comment
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:43pm — No Comments
रोला छंद . . . .
हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।
सदा सत्य के साथ , राह पर चलते रहना ।
पथ में अनगिन शूल , करेंगे पैदा बाधा ।
जीवन का संकल्प , छोड़ना कभी न आधा ।
***
जब तक तन में साँस , बहे यह जीवन धारा ।
विपदाओं से यार, भला कब जीवन हारा ।
सुख - दुख का यह चक्र , सदा से चलता आया ।
उस दाता के खेल, जीव यह समझ न पाया ।
***
जब होता अवसान ,मृदा में मिलती काया ।
जब तक चलती साँस , साथ में चलती छाया ।
भोगों…
Added by Sushil Sarna on November 15, 2024 at 12:42pm — No Comments
दोहा पंचक. . . विविध
देख उजाला भोर का, डर कर भागी रात ।
कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।
गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।
सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।
धर्म - कर्म ईमान सब, बेमतलब की बात ।
क्षुधित उदर को चाहिए, केवल रोटी भात ।।
आँधी आई अर्थ की, दरकी हर दीवार ।
अपनी ही दहलीज पर, रिश्ते सब लाचार ।
नवयुग के परिवेश में, प्यार बना व्यापार ।
प्यार नहीं है जिस्म को, जिस्मानी दरकार ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 9, 2024 at 3:30pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |