जम्हूरियत के बुर्ज पर
बैठा सियासत का गिद्ध
फेरता है चारो ओर
पैनी निगाह
जो है अप्रेरित
भूख से,
वह ढूंढता नहीं है
लाश,
भिड़ाता है तरकीब
लाश बिछाने की..
सत्ता की अंध महत्वकांक्षा में
ये निगाह रहती है
चिर अतृप्त.
चुनावों के मौसम में बढ़ जाती
आवाजाही गिद्धों की .
.......... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 24, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
टूटी चूड़ियाँ
बह गया सिन्दूर
साथ ही टूटा
अनवरत
यंत्रणा का सिलसिला
बह गया फूटकर
रिश्तों का एक घाव
पिलपिला
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 14, 2013 at 8:30pm — 32 Comments
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