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मनोज अहसास's Blog – December 2016 Archive (1)

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना

सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू

फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा

खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ



जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा

सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा

फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम

मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा



हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है

भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा

रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे

तब बहुत झूठ सी लगती है… Continue

Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments

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