रात आँखों में बिता दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
मैं आज बत्तियां जला दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
बैठे हो सर झुकाए, कुछ गुमशुदा से बन के,
आज घूँघट फिर उठा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
है कंपता बदन ये, आँखों में कुछ नमी है,
लाओ सर जरा दबा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
लगती हो खोई-खोई, किस सोच में पड़ी हो ?
ग़र फिक्र सब मिटा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
ख़ामोशी क्यूँ है इतनी ? अरे गाते थे कभी हम,
मैं कुछ गीत…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on December 30, 2014 at 8:14pm — 9 Comments
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