२१२ २१२
आपका नाम था
मेरा तो जाम था
हर किसी धर्म में
प्यार पैगाम था
रब मिला ही नहीं
उससे कुछ काम था
वो ख़ुदा था कहीं
पर कहीं राम था
थी ख़ुशी ख़ास में
गम मगर आम था
प्रेम इंसानियत
अब भी गुमनाम था
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 30, 2015 at 7:28pm — No Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
इक सवाल आँखों में ही बसा रह गया
यूँ लगे जैसे इक ख़त खुला रह गया
रेल से वो चली शहर ये छोड़कर
और टेशन पे मैं बस खड़ा रह गया
दाग गिनवा रहा था जमाने के मैं
सामने मेरे बस आइना रह गया
वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज
देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया
शख्स हर जानता जिंदगी है सफ़र
मंजिलें हर कोई ढूंढता रहा गया
दम निकलते समय भूला मैं रब को भी
इन लबों पर तेरा नाम सा…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2015 at 8:27pm — 10 Comments
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