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तुम मेरे नाम की पहचान बन गए
मेरे लिए ख़ुदा रब भगवान बन गए
दहशत के कारबार का सामान बन गए
लगता है सारे लोग ही हैवान बन गए
तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए
हालात आज शहर के अब देखिये ज़रा
हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए
ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
अच्छी ग़ज़ल लिखी है आ० गुमनाम जी ,बस पहले शेर की प्रथम पंक्ति में थोड़ी सी गड़बड़ है आशा है उसे आप ठीक कर लेंगे ,बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए
तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के---मिसरे करीब करीब एक जैसे हो गए एक में बदलाव करेंगे तो बेहतर लगेगी
तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए........बहुत सुंदर. बधाई आदरणीय
sir ek akshar miss ho gaya hai..........
आज .
तुम आज मेरे नाम की पहचान बन गए -मेरे नाम की पहचान बन गए -
आदरणीय गुमनाम भाई , बढ़िया गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ |
तुम मेरे नाम की पहचान बन गए --- मतले का उला बेबहर हो गया है , देख लीजिएगा |
हरेक शेर लाजबाब ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आदरणीय बधाई.
हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए
वाह!!! क्या बात कही है आपने ?सोलह आने सच्च .बधाई आ ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी.
आदरणीय पिथौरागढ़ी जी,
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
"ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए"
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