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हो रहा है मुझे ये वहम देखिये
आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये
आधुनिकता के ऐसे नशे में हैं गुम
नौजवानों के बहके क़दम देखिये
पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ
आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये
शहर लगता है शमशान सा इन दिनों
आस्तीनों में किसके है बम देखिये
नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार
महके उस रोज से ही क़लम देखिये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर गजल ! बधाई सादर !
dhanywaad dosto .................. aapka saath hamesha prerana deta hai,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बढ़िया ग़ज़ल , आदरणीय गुमनाम भाई , आपको दिली बधाइयाँ |
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... बधाई सादर!
हो रहा है मुझे ये वहम देखिये
आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये//////////waah
नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार
महके उस रोज से ही क़लम देखिये//waah waah waah
bahutr hi zordaar gazal gumnaam bhai,,,,,,,,,,,,bahut bahut badhai apko
sunder gazal badhai
सुन्दर गज़ल .... सादर बधाई..... |
namaskaar dosto.............. aapne saraha koshish safal hui...............................
पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ
आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये...आदरणीय लक्ष्मण जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर
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