122-122-122-122
यही है शिकायत यही तो गिला है
चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)
लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है
मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)
कभी सामने जो अकड़ता बहुत था
वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)
न आगे कोई है न है कोई पीछे
बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)
बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये
न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)
ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर
ये ग़म है कि…
Added by सालिक गणवीर on December 24, 2021 at 11:00pm — 4 Comments
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