Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 31, 2010 at 4:34pm — 4 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 26, 2010 at 11:25pm — 3 Comments
अवकलन समाकलन
फलन हो या चलन-कलन
हरेक ही समीकरन
के हल में तू ही आ मिली
घुली थी अम्ल क्षार में
विलायकों के जार में
हर इक लवण के सार में
तु ही सदा घुली मिली
घनत्व के महत्व में
गुरुत्व के प्रभुत्व में
हर एक मूल तत्व में
तु ही सदा बसी मिली
थीं ताप में थीं भाप में
थीं व्यास में थीं चाप में
हो तौल या कि माप में
सदा तु ही मुझे मिली
तुझे ही मैंने था पढ़ा
तेरे सहारे ही बढ़ा
हुँ आज भी वहीं खड़ा
जहाँ मुझे थी तू…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2010 at 6:33pm — 3 Comments
हवाई जहाज को
दुनिया और ख़ासकर शहर
बड़े खूबसूरत नजर आते हैं
सपाट चमचमाती सड़कों से उड़ना
रुई के गोलों जैसे
सफेद बादलों के पार जाना
हर समय चमचमाते हुए
हवाई अड्डों पर उतरना या खड़े रहना
दरअसल
असली दुनिया क्या होती है
हवाई जहाज
ये जानता ही नहीं
वो अपना सारा जीवन
असली दुनिया से दूर
सपनों की चमकीली दुनिया में ही बिता देता है
हवाई जहाज भी क्या करे
उसका निर्माण किया ही गया है
सपनों की दुनिया में रहने के लिए
वो रिक्शे या साइकिल…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 11, 2010 at 8:20pm — 1 Comment
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