बह्र : २१२ २१२ २१२
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इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे
गाल पे लाल बत्ती हुई
और लम्हे ठहरने लगे
दिल की सड़कों पे बारिश हुई
जख़्म फिर से उभरने लगे
प्यार आखिर हमें भी हुआ
और हम भी सुधरने लगे
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 27, 2013 at 11:39pm — 13 Comments
सीएफ़एल बोली, "हे बल्ब महोदय! आप ऊर्जा बहुत ज्यादा खर्च करते हैं और रोशनी बहुत कम देते हैं। मैं आपकी तुलना में बहुत कम ऊर्जा खर्च करके आपसे कई गुना ज्यादा रोशनी दे सकती हूँ।"
बल्ब महोदय ने चुपचाप सीएफ़एल के लिए कुर्सी खाली कर दी। रोशनी फैलाने वालों के इतिहास में बल्ब महोदय का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
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सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ
मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाकी हैं सीढ़ियाँ
तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ
झुक लो जरा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ
चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे
जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ
मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की
लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ
रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के
हर पग पे एक पैग…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 5, 2013 at 11:09pm — 24 Comments
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