कितना तामझाम....(नवगीत)
कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।
स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया
रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती…
Added by seemahari sharma on December 26, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
Added by seemahari sharma on December 24, 2014 at 12:43pm — 18 Comments
Added by seemahari sharma on December 19, 2014 at 5:38pm — 12 Comments
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