2122 1212 22 /112
क्या नहीं ये अजीब हसरत है ?
ग़म किसी का किसी की राहत है
ख़ाक में हम मिलाना चाहें जिसे
उनको ही सारी बादशाहत है
रोटी कपड़ा मकान में फँसकर
बुजदिली, हो चुकी शराफत है
हर्फ करते हैं प्यार की बातें
आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है
मुज़रिमों को मिले कई इनआम
आज मजलूम की ये क़िस्मत है
बेरहम क़ातिलों को मौत मिली
सेक्युलर कह रहे , शहादत है
हाँ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 10:30am — 30 Comments
कैच जिसके उछाला गया है , उसे लेने दो भाई
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बाल , नो बाल थी
इसलिये पूरे दम से मारा था शाट
मेरे बल्ले का शाट
थर्ड मैन सीमा रेखा के पार जाने के लिये था
अगर बाल लपक न ली जाती तो
अफसोस इस बात का नहीं है बाल लपक ली गई
दुख इस बात का है, कि
मेरे बहुत करीब खड़े , स्लिप और गली के फिल्डर दौड़ पड़े
ये जानते हुये भी , ये कैच उनका नही है
आपस मे टकराये , गिरे पड़े , घायल…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 7, 2015 at 7:30am — 8 Comments
नीम तले ही खेलें
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कहाँ छाया खोजते हो तुम भी
बबूलों के जंगलों में
केवल कांटे ही बिछे होंगे ,
नुकीले , धारदार
सारी ज़मीन में
काट डालें
जला ड़ालें उसे
उनके पास है भी क्या देने के लिये
सिवाय कांटों के
चुभन और दर्द के
कुछ अनचाही परेशानियों के
होंगी कुछ खासियतें ,
बबूलों में भी
पर इतनी भी नहीं कि लगायें जायें
बबूलों के जंगल
नीम में उससे भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2015 at 8:00pm — 3 Comments
1222 1222 122
हथेली खून से जो तर हुई थी
न जाने क्यूँ यहाँ रहबर हुई थी
जो सच जाना उसे सहना कठिन था
ज़बाँ तो इसलिये बाहर हुई थी
कि उनके नाम में धोखा छिपा है
समझ धीरे सहीं , घर घर हुई थी
वही इक बात जो थी प्रश्न हमको
वही आगे बढ़ी , उत्तर हुई थी
निकाले जब गये सब ओहदों से
ज़मीं बस उस समय बेहतर हुई थी
कहीं पंडित मरे, टूटे थे मन्दिर
कहो कब आँख किसकी तर हुई थी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 4, 2015 at 8:02am — 19 Comments
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