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कर के उल्टी, कभी नहीं कहते
ख़ुद की हो गंदगी ...नहीं कहते
कितने बे ख़ौफ हो गये हैं सब
चाँद को चाँद भी नहीं कहते
सादगी देख कर भी पागल में
हम उसे सादगी नहीं कहते
फाइदा तो लिये उजालों का
पर उसे रोशनी नहीं कहते
जब से इमदाद-ए-पाक पाये हैं
हम उन्हें आदमी नहीं कहते
क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा
हम उसे बंदगी नहीं कहते
तुम इसे मौत कह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2016 at 10:30am — 7 Comments
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जो खोजते हैं रोज़ कोई मुद्दआ मिले
तफ़्सील में गये तो वो ख़ुद से ख़फ़ा मिले
नफरत मिली है देखिये नफरत से इस तरह
मजबूरियों में तेल ज्यूँ पानी से जा मिले
हारे हुए मिलेंगे जहाँ खार कुछ तुम्हें
मुमकिन है उस जगह से मिरा भी पता मिले"
हम दिल से चाहते हैं उन्हें दाद हो अता
जो नेवले की जात हो, साँपों से जा मिले
बादल बरस के साथ ही ऐलान कर गया
क़िस्मत ही फैसला करे, अब तुझको क्या…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 9:30am — 28 Comments
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