संस्कार की नींव दे, उन्नति का प्रासाद
हर मन बंदिश में रहे, हर मन हो आजाद।१।
महल झोपड़ी सब जगह, भरा रहे भंडार
जिस दर भी जायें मिले, भूखे को आहार।२।
लगे न बीते साल सा, तन मन कोई घाव
राजनीति ना भर सके, जन में नया दुराव।३।
धन की बरकत ले धनी, निर्धन हो धनवान
शक्तिहीन अन्याय हो, न्याय बने बलवान।४।
घर आँगन सबके खिलें, प्रीत प्यार के फूल
और जले नव वर्ष मेें, हर नफरत का शूल।५।
निर्धन को नव वर्ष की, बस इतनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2018 at 5:54pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब किसी के मुख न उभरे कातिलों के डर दिखें
इस वतन में हर तरफ खुशहाल सब के घर दिखें।१ ।
काम हासिल हो सभी को जैसा रखते वो हुनर
फैलते सम्मुख किसी के अब न यारो कर दिखें।२।
भाईचारा जब हो कहते हम सभी के बीच तो
आस्तीनों में छिपाये लोग क्यों खन्जर दिखें।३।
हौसला कायम रहे यूँ सच बयानी का सदा
आईनों के सामने आते न अब पत्थर दिखें।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 10:51am — 3 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
हुआ कुर्सी का अब तक भी नहीं दीदार जाने क्यों
वो सोचें बीच में जनता बनी दीवार जाने क्यों।१।
बड़ा ही भक्त है या फिर जरूरत वोट पाने की
लिया करता है मंदिर नाम वो सौ बार जाने क्यों ।२।
तिजारत वो चुनावों में हमेशा वोट की करते
हकों की बात भी लगती उन्हें व्यापार जाने क्यों ।३।
नतीजा एक भी अच्छा नहीं जनता के हक में जब
यहाँ सन्सद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 3:35pm — 12 Comments
छलकते देख कर आँसू ग़मों की प्यास बढ़ जाये
कभी ऐसा भी मौसम हो चुभन की आस बढ़ जाये।१।
लगे ठोकर किसी को भी न चाहे घाव खुद को हो
मगर देखें तो दिल में दर्द का अहसास बढ़ जाये।२।
भला कब चाहते हैं ये जिन्हें हम शूल कहते हैं
मिटे पतझड़ चमन का साथ ही मधुमास बढ़ जाये।३।
लगाई नफरतों ने है यहाँ हर सिम्त ही बंदिश
घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये।४।
रखो ये ज्ञान भी यारो जो चाहत घुड़सवारी की
नहीं घोड़ा सँभलता है अगर जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 12:36pm — 6 Comments
घर में किसी के और अब अनबन कोई न हो
सूना पड़ा हमेशा ही आगन कोई न हो।१।
कुछ तो सहारा दो उसे हँसने जरा लगे
होकर निराश घुट रहा जीवन कोई न हो।२।
झुकना पड़े तनिक तो खुद झुकना सदा ही तुम
यारो मिलन की राह में उलझन कोई न हो।३।
आओ बनायें आज फिर ऐसा समाज हम
ओढ़े बुढ़ापा जी रहा बचपन कोई न हो।४।
जल जाएँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2018 at 12:22pm — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |