२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
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उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
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इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
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खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
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सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
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बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
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मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
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ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments
बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
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हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
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कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
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नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कौन कहता है कि उनसे और वादा कीजिए
है निवेदन जो किया था वो ही पूरा कीजिए।१।
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सब्र दशकों से किये है आमजन इस देश का
अब गरीबी भूख का कुछ तो सफाया कीजिए।२।
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बस चुनावों में विरोधी बाद उस के सब सखा
मूर्ख जनता को समझ ऐसे न साधा कीजिए।३।
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जल रहा कश्मीर तुमको फिक्र अपने कुनबे की
सिर्फ कुर्सी के लिए …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2020 at 7:30am — 10 Comments
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