खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
*
बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
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मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
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ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में बटुआ चोरी करता है।४।
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मत आ जाना तुम झाँसे में हम तो उसको झेल रहे
धूप की बातें करते-करते छाया चोरी करता है।५।
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खूब सुना है राजतन्त्र में चोर को राजा से डर था
लोकतन्त्र में उलटी गंगा राजा चोरी करता है।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में बटुआ चोरी करता है।४।
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आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
एक और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शैर दर शैर दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, बिल्कुल नई रदीफ़ में बहुत उम्द: ग़ज़ल कही है आपने, इस्तेआरो की मदद से आपने भरपूर तंज़ किये हैं, दाद के साथ मुनारकबद पेश करता हूँ ।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जनाब लक्षमण धामी भाई 'मुसाफ़िर' जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल पेश की है आपने दाद ओ मुबारकबाद पेश करता हूँ । सादर।
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