बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
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हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
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कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
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नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत में
डालिए मत राह में अब और पत्थर अन्नदाता के लिए।४।
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खा गयी नहरें सियासत कर्ज ने छीने रहट सब दोस्तो
आ न पायी और बदली भी समय पर अन्नदाता के लिए।५।
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ये सियासत राख की ढेरी अगर है तो हमारी है दुआ
आग जन्मे रोज हित में सबके अन्दर अन्नदाता के लिए।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई दण्डपाणि नाहक जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
बड़ी ही खूब असरदार ग़ज़ल कही आदरणीय धामी जी...
आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी , बधाई ग़ज़ल के लिए , सादर।
आ. भाई समर जी, गजल पर पुनः उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।
बदलाव भी ठीक हैं,और नए अशआर भी, बधाई ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । दो नये शेर और जोड़े हैं इन्हें भी देखिएगा । सादर...
एक तो विपरीत मौसम उस पे ये शोषक व्यवस्था का सितम
आज लगता खो गये हैं सारे अवसर अन्नदाता के लिए।७।
कर्ज सूखा बाढ़ शोषण और ओले साथ में सल्फास भी
जाने क्या क्या चुन रहा है ईश ऊपर अन्नदाता के लिए।८।
आ. भाई समर कबीर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति प्रशंसा व मार्गदर्शन के लिए आभार । इंगित मिसरों को इस प्रकार बदलाव किया है देखियेगा ।
कौन सी सरकार चिन्तित है यहाँ अब अन्नदाता के लिए।१।
अर्थ यूँ रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
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